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________________ २५ एवंभूत नय : स्वप्रवृत्ति निमित्त भूत क्रिया से विशिष्ट अर्थ को ही वाच्य माननेवाला नय एवंभूत है। एवंभूत नय का ये मत है कि शब्द अर्थक्रिया में वर्तमान अर्थ का ही वाचक होता है। घट जब जलाहरण में वर्तमान है तो ही घट पद वाच्य है, अन्यथा नहीं। एवंभूत नय कहता है कि शब्द को आप जिस अर्थ में बोलते हो वो अपने व्युत्पत्ति निमित्त में होना चाहिये। अर्थात् गाय जब चलती है तो ही गाय है। पंकज तब ही पंकज है जब वह पंके जायमान है। उग जाने के बाद वह पंकज कैसा? | नैगमनयके उत्तरभेदः आरोप नैगम आरोप संकल्प और अंश के भेद से नैगम नय तीन प्रकार का है। पर विशेषावश्यक में उपचार का आश्रय लेकर चार प्रकार का कहा गया है। (टिप्पणी : आरोप, संकल्प, अंश की व्याख्या और विशेषावश्यक में यह तीन भेद कहां पर है यह अभी तक ज्ञान नहीं है।) द्रव्य आरोप, काल आरोप, गुण आरोप, हेत्वादि आरोप यह चार भेद से नैगम चार प्रकार का है। जो तद् रूप नहीं है उसमे तद्वत्ता की बुद्धि करना आरोप है। जैसे भ्रमज्ञान से शुक्ति में रजतत्व नहीं है फिर भी रजतत्व का आरोप होता है। भ्रम में आरोप दोष के कारण होता है। वस्तु विशेष के कथन की अपेक्षा में जानबूझ कर भी आरोप होता है। जैसे प्रतिमा में पूज्यता की दृष्टि से भगवान के गुणों का आरोप होता है। १) गुण में द्रव्यका आरोप : अर्थात् गुण को द्रव्य कहना । काल वास्तव में द्रव्य नहीं है क्योंकि उसका ध्रुवांश कोई नहीं है। अतः 'उत्पादव्ययध्रौव्य युक्तं सत्' यह द्रव्य का लक्षण उसमें घटित नहीं होता है। काल द्रव्य का वर्तना पर्यायरूप गुण में द्रव्य के सत्त्व वगैरह गुणों का आरोप करके काल को द्रव्य कहा जाता है। यह गुण ( = परावर्तन स्वरूप वर्तना पर्याय) में द्रव्य आरोप है। २) द्रव्य में गुणारोप अर्थात् द्रव्य को गुण कहना। द्रव्य गुण नहीं है फिर भी उसे गुण कहना। ज्ञान गुण है, जीव द्रव्य है ज्ञान की प्रधानता के कारण जीव को ज्ञान ही कहना - जैसे 'ज्ञानमेव जीवः' - द्रव्य में गुण का आरोप है। ३) काल आरोप दो प्रकार का है। वर्तमान काल में भूतकाल का आरोप और वर्तमान काल में भविष्य काल का आरोप। वर्तमान काल में भूतकाल के आरोप का उदाहरण है - आज दीवाली का दिन महावीर स्वामी के निर्वाण का दिन है। महावीर स्वामी का निर्वाण २६०० साल पहले हुआ है फिर भी उस दिन का आज के दिन में आरोप किया जाता है। वर्तमान काल में भविष्यकाल के आरोप का उदाहरण है- आज पद्मनाभ जिन का निर्वाणदिन है। पद्मनाभ आनेवाली चोवीसी की तीर्थंकर है उनका निर्वाण भविष्य में होगा आज के दिन उसका आरोप किया है। इस प्रकार कालारोप के छहः भेद होते है। वर्तमानकाल में भूतकाल का आरोप, वर्तमानकाल में भविष्यकाल का आरोप, भूतकाल में वर्तमानकाल का आरोप, भूतकाल में भविष्यकाल का आरोप, भविष्यकाल में वर्तमानकाल का आरोप, भविष्यकाल में भूतकाल का आरोप। प्रथम दो के उदाहरण उपर प्रस्तुत किये है। भूतकाल में वर्तमानकाल का आरोप अर्थात् भूतकाल को वर्तमानकाल कहना - जैसे 'राजगृही नगरी मे श्रेणिक राजा राज्य करता है।' किसी कथाग्रंथ का यह वाक्य भूतकाल को वर्तमान काल के रूप प्रस्तु करता है। भूतकाल में भविष्यकाल का आरोप अर्थात् भूतकाल को भविष्यकाल के रूप में प्रस्तुत करना । उदाहरण जैसे कल पद्मनाभ स्वामी का निर्वाणदिन था यहां कल = भूतकाल को भविष्यकाल के रूप में देखा गया है। भविष्यकाल में वर्तमानकाल का आरोप । जैसे- पद्मनाभ जिन के वर्णन में यह कहना कि 'भरतक्षेत्र में पद्मनाभ स्वामी विचर रहे है।' ४) कारण में कार्य का आरोप चार प्रकारका है। उपादान कारण में कार्यारोप, निमित्तकारण में कार्यारोप,
SR No.009265
Book TitleSyadvada Pushpakalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitranandi,
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages218
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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