________________
18
तथा ऋद्धि प्राप्त करने वाले ऋषियों का वर्णन जिस सूत्र में है उसे कल्पावतंसिका कहते है । इस सूत्र की मैं उपासना करता हूँ ।
I
(२९) गृहस्थ भी संयम भाव से पुष्पित हो सकता है—यह उपदेश पुष्पिता सूत्र का केन्द्र बिन्दु है । चन्द्र और सूर्य नाम के राजा ने पूर्व भव में दीक्षा ली थी । बहुपुत्रिका नामक देवी को पूर्व भव में सन्तान नहीं थे उसने भी दीक्षा ली थी । दीक्षा लेकर इन तीनो ने संयम की विराधना की । उसके फल का वर्णन गौतम स्वामि ने इस सूत्र में किया है। यह सूत्र हमारे सुख को विकसित करें ।
(३०) पुष्पचूलिका सूत्र में श्री ही इत्यादि देवियों के परिवार आदि का स्वरूप वर्णित है । पुष्पचूलिका मेरी प्रसन्नता के अनुकूल हो ।
(३१) वह्निदशा सूत्र अन्धकवृष्णि राजा के गोत्रज निषधादि बारह राजा के यश की माला जैसा है । यह सूत्र भक्ति में तत्पर जन की शुभ अवस्था को पुष्ट करें ।
(३२) उपांग सूत्र के बाद क्रम में नन्दी, अनुयोगद्वार का स्थान है। इन सूत्रों की स्तुति श्लोक सात और आठ में की है। इसलिये अब दो आर्या से तेरह प्रकीर्णक सूत्रों की स्तुति प्रस्तुत है । १. मरणसमाधि, २. महाप्रत्याख्यान, ३. आतुरप्रत्याख्यान, ४. संस्तारक, ५. चन्द्रवेध्यक, ६. भक्तपरिज्ञा, ७. चतुःशरण प्रकीर्णक, इन (सात) सूत्रो को मैं वन्दन करता हूँ ।
(३३) ८. वीरस्तव, ९. देवेन्द्रस्तव, १०. गच्छाचार, ११. गणिविद्या, १२. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, १३. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक इन (छः) सूत्रों को मैं नमन करता हूँ | तेरह प्रकीर्णक सूत्रो के नामार्थ पाक्षिक सूत्र की अवचूर्णि में है ।
(३४) निशीथ का अर्थ है मध्यरात्रि । मध्यरात्रि की तरह गुप्त होने से इस सूत्र का निशीथ नाम है । यह सूत्र आचारांग सूत्र की पाँचवी चूलिका रूप है । इसमें विविध उत्सर्ग और अपवाद का निरूपण है । उद्धात और
I