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को प्रमाणित करने वाली सैंकडो युक्तियाँ उस उपांग में है। मैं इसकी पूजा करता हूँ।
(२३) जीवाभिगम सूत्र, स्थानांग का उपांग है । इस में जीव और अजीव तत्व के दो-दो भेद बताकर निरूपण किया है। इस सूत्र में नौ प्रतिपत्तियाँ अर्थात् अधिकार है। बहुत सारे भेद-प्रभेद का वर्णन होने से यह सूत्र दुरूह प्रतीत होता है। हम इस सूत्र का ध्यान करते हैं।
(२४) प्रज्ञापना सूत्र, समवायांग का उपांग है । यह सूत्र श्री श्यामार्य अर्थात् कालिकाचार्य के निर्मल यश स्वरूप है। इस सूत्र में छत्तीस अधिकार द्वारा जीव और अजीव के नानाविध पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। मैं इस सूत्र की स्तुति करता हूँ।
(२५) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पाँचवा उपांग है । इसमें पहले जम्बूद्वीप की स्थिति का, तीर्थंकर के जन्म महोत्सव का तथा चक्रवर्तियों के दिग्विजय का विवरण है । हे भगवती ! जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ! आप को नमस्कार हो ।
___(२६) चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति युगल बालक जैसे है। इन दोनों सूत्र के शब्द में और अर्थ में ज्यादा भेद नहीं है । मैं इनको प्रणाम करता
(२७) निरयावलिका सूत्र में कालादि दस कुमारों का वर्णन है । कूणिक और चेटकराज के बीच महासंग्राम हुआ था । कालादि दस कुमार कूणिक के सौतेले भाई थे। उन्होंने इस संग्राम में भाग लेकर पाप उपार्जित किया परिणामतः वे नरक के अतिथि बने । निरयावलिका सूत्र का विजय हो।
(२८) श्रेणिक राज के पद्मादि पौत्र (निरयावलिका सूत्र में वर्णित कालादि दस कुमारों के पुत्र) थे। उन्होंने परमात्मा श्री महावीर के शिष्य बनकर कल्प अर्थात् वैमानिक देवलोक प्राप्त किया था । कल्पावतंसिका सूत्र में पद्मादि ऋषि का वर्णन है । सौधर्म, ईशान इत्यादि देवविमानों के कल्पावतंस (कल्पों में श्रेष्ठ) कहा जाता है । तप के प्रभाव से उसमें स्थान