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________________ 12 युक्तियाँ अमोघ है। आगम के अर्थघटन की विधा को अनुयोग कहते है। आगम में प्रवेश उपोद्घात से होता है। उपोद्घात के छब्बीस भेद है जो उद्देसे (आ.नि. १४०) इत्यादि गाथा में बताये है। उसमें विकल्प रूप काल नाम का भेद है। उसके ग्यारह भेद जो दव्वे (६५९) इत्यादि गाथा में बताये है। उसका छठवा भेद उपक्रम काल है। उपक्रम काल के दो भेद है - सामाचार्युपक्रमकाल और यथायुष्कोपक्रमकाल । सामाचार्युपक्रमकाल के तीन भेद है - ओघसामाचारी, इच्छाकारादिदशविधसामाचारी और पदविभागसामाचारी । ओघनियुक्ति ओघसामाचारी में आती है, जिसमें सामाचारी का संक्षेप में वर्णन होता है । उसकी मैं स्तुति करता हूँ। (६) पिण्ड नियुक्ति, दोष रहित विशुद्ध आहार ग्रहण के ज्ञान में कुशलता सम्पादन कराती है। उसकी रचना सुकोमल पदों से हुई है अतः सुनने में मधुर है। उसकी हम स्तुति करते हैं। नन्दी-अनुयोगद्वार (७) जैसे नाटक का प्रारम्भ मंगलरूप बारह प्रकार के वाजिंत्र के नाद से होता है जिसे नान्दी कहा जाता है, वैसे ही जिनमत स्वरूप नाटक का प्रारम्भ नन्दीसूत्र से होता है । नन्दीसूत्र में मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान का वर्णन है । नन्दीसूत्र हमारे आनन्द में अभिवृद्धि करें । (८) अनुयोगद्वार मोक्षनगर का द्वार है । आगम श्रुत एक घर है तो अनुयोगद्वार उसके सोपान है । अनुयोगद्वार सूत्र की जय हो । (९) उत्तराध्ययनसूत्र शान्तरस के अमृत की नदी समान है। उसमें छत्तीस प्रधान अध्ययन है । श्रीनेमिनाथ भगवान, श्रीपार्श्वनाथ भगवान, श्रीमहावीरस्वामि भगवान के तीर्थ में नारदादि ऋषि हुए । उन्होंने बनायें पैतालीस अध्ययन का समूह ऋषिभाषित के नाम से प्रसिद्ध है। इन दोनों सूत्रो की मैं पूजा करता हूँ।
SR No.009264
Book TitleSarva Siddhanta Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhasuri, Somodaygani
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages69
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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