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________________ 11 चार मूलसूत्र (२) पहला आगम आवश्यकसूत्र है । उसके छह अध्ययन है । सामायिक (१) चतुर्विंशतिस्तव (२) वन्दनक (३) प्रतिक्रमण (४) कायोत्सर्ग (५) प्रत्याख्यान (६) । यह आगम मुक्ति स्त्री को देखने के लिये दर्पण समान है। इसके उपर श्री भद्रबाहुसू. म. ने इकत्तीस सौ श्लोक प्रमाण निर्युक्ति रची है । अठारह हजार श्लोक प्रमाण प्राचीन चूर्णि भी है । बाईस हजार श्लोक प्रमाण वृत्ति है । जो इस आगम के अर्थ को स्पष्ट करते है । इसे मैं हृदय में धारण करता हूँ। I 1 (३) श्रीविशेषावश्यक भाष्य, आवश्यकसूत्र का ही विस्तार है । भाष्य का अर्थ यही है - सूत्र के अर्थ का विस्तार । विस्तृत होने से उसका दूसरा नाम महाभाष्य है । स्वाति नक्षत्र में सीप में पानी गिरता है वह मोती बन है । महाभाष्य युक्ति रूप मोती का उत्पादक है, जैसे स्वाति का नीर । सागर में जीतनी मौजे उठती है उतने पदार्थ महाभाष्य में है । उसकी मैं स्तुति करता हूँ | जाता I I (४) श्रीदशवैकालिक सूत्र मेरु पर्वत जैसा है । मेरु पर्वत की चालीस योजन ऊँची चूलिका है, श्रीदशवैकालिक सूत्र की दो चूलिकाएँ है । मेरु पर्वत देवों का प्रिय स्थल है, श्रीदशवैकालिक सूत्र उत्तम मुनियों का प्रिय शास्त्र है । मेरु पर्वत सुवर्णमय है, श्रीदशवैकालिक सूत्र कल्याणमय है । श्री शय्यंभवसूरिजी ने अनध्याय काल में दस अध्ययन रूप सूत्र का प्रणयन किया है । उसकी हम स्तुति करते है । I (५) ओघनिर्युक्ति, श्री भद्रबाहुसू.म. ने नौवे प्रत्याख्यानप्रवाद पूर्व की तीसरी आचार नामक वस्तु के बीसवे प्राभृत से उद्धृत किया और वर्तमानकालीन साधुओं के हित के लिये आवश्यकनियुक्ति में गणधरवाद के आगे उसे स्थिर किया। बाद में सुगमता के लिये उसे स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में स्थापित किया गया है। ओघनिर्युक्ति प्रशस्त है, उसमें शब्द कम अर्थ ज्यादा है, उसमें बताई गई
SR No.009264
Book TitleSarva Siddhanta Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhasuri, Somodaygani
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages69
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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