SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रति की प्रतिछाया (झेरोक्षकोपी) ही उपलब्ध हुई है, अतः पत्र का माप एवं प्रत की स्थिति के विषय में कहने के लिये अक्षम है। इस प्रत का ३०वां पत्र नहीं है अतः ४९ से ६७ तक अठारह गाथा अप्राप्य है। दर्दैव से इसकी दूसरी प्राचीन हस्तप्रत उपलब्ध नहीं है। प्रवर्तक श्री कांतिवि.म. ने इसी हस्तप्रत की प्रतिलिपि करवाई है अतः उस में भी विच्छिन्न पाठ नहीं है। (इसका क्रमांक २०५६ है) इस प्रत में पत्र २६/२७ का कुछ भाग अवाच्य हो गया है। कर्ता ने टिप्पणी भी की है परंतु वह भी अवाच्य है। ___मनःस्थिरीकरण प्रकरण की ७४/७५ वी गाथा में ग्रंथकार ने प्रज्ञापना सूत्र के तेईसवें पद के तीसरे उद्देश से संकलित एकेन्द्रियादि के १५८ प्रकृतिबन्ध की विचारणा प्रस्तुत की है वह स्वतंत्र कृति जैसी है अतः उसका समावेश परिशिष्ट ७ में किया है। मेरे परम उपकारी परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा, पितृगुरुदेव परम पूज्य मुनिप्रवरश्री संवेगरति विजयजी म.सा.की पावन कृपा, बंधुमुनिवरश्री प्रशमरतिविजयजी म.का स्नेहभाव एवं परम पूज्य साध्वीजी श्रीहर्षरेखाश्रीजी म.की शिष्या साध्वीजी श्रीजिनरत्नाश्रीजीम.का निरपेक्ष सहायकभाव मेरी प्रत्येक प्रवृत्ति की आधारशिला है। आपके उपकारों से उऋण होना संभव नहीं है। संपादन के इस कार्य में मुझे पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय मुनिचंद्रसू. म. के मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं सहायता प्राप्त होती रही है। आपकी उदारचित्तता को शत शत नमन। संपादन कार्य में श्रुतभवन संशोधन केन्द्र के सभी संशोधन सहकर्मी ने भक्ति से सहकार्य किया है अतः वे साधुवादाह है। यद्यपि कर्मग्रंथ मेरा विषय नहीं है फिर भी अन्यान्य ग्रंथों की सहायता से मनःस्थिरीकरण प्रकरण का शुद्ध संपादन करने का प्रयास किया है। प्रमादवश कुछ अशुद्धियाँ रह गई हो तो विद्वान पाठकगण सम्पादक के प्रमाद को और भूल को क्षमा प्रदान करेंगे ऐसी विनम्र प्रार्थना है। - वैराग्यरतिविजय श्रुतभवन, पुणे २७.१२.१२
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy