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माया के चार प्रकार
(१) अनन्तानुबन्धी माया (२) अप्रत्याख्यान माया ३) प्रत्याख्यान माया एवं ( ४ ) संज्वलन माया ।
१) अनन्तानुबन्धी माया- जैसे बांस की कठिन जड का टेढापन किसी भी उपाय से दूर नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार जो माया किसी भी प्रकार दूर न हो, अर्थात् सरलता रूप में परिणत न हो वह अनन्तानुबन्धी माया है।
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२) अप्रत्याख्यान माया- जैसे मेंढें का टेढा सींग अनेक उपाय करने पर भी बडी मुश्किल से सीधा होता है। उसी प्रकार जो माया अत्यन्त परिश्रम से दूर की जा सके वह अप्रत्याख्यान माया है।
३) प्रत्याख्यान माया- जैसे चलते हुए बैल से मूत्र की टेढी लकीर सूख जाने पर पवनादि से मिट जाती है उसी प्रकार जो माया सरलता पूर्वक दूर हो सके वह प्रत्याख्यान माया है।
४) संज्वलन माया - छीले जाते हुए बांस के छिलके का टेढापन बिना प्रयत्न के सहज ही मिट जाता है। उसी प्रकार जो माया बिना परिश्रम के शीघ्र ही अपने आप दूर हो जाय वह संज्वलन माया है।
लोभ के चार प्रकार- ( १ ) अनन्तानुबन्धी लोभ (२) अप्रत्याख्यान लोभ (३) प्रत्याख्यान लोभ एवं (४) संज्वलन लोभ ।
१) अनन्तानुबन्धी लोभ- जैसे किरमची का रंग किसी भी उपाय से नही छूटता। उसी प्रकार जो लोभ किसी भी उपाय दूर न हो वह अनन्तानुबन्धी लोभ है।
२) अप्रत्याख्यान लोभ- जैसे गाडी के पहिए का कीटा (खंजन) परिश्रम करने पर अति कष्टपूर्वक छूटता है। उसी प्रकार जो लोभ अति परिश्रम से कष्टपूर्वक दूर किया जा सके वह अप्रत्याख्यान लोभ है। ३) प्रत्याख्यान लोभ- जैसे काजल का रंग अल्प परिश्रम से छूटता है । उसी तरह जो लोभ अल्प परिश्रम से किया जा सके वह प्रत्याख्यान लोभ है।
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४) संज्वलन लोभ- जैसे हल्दि का रंग सहज ही छूट जाता है। उसी प्रकार जो लोभ आसानी से स्वयं दूर हो जाय वह संज्वलन लोभ है।
(१) आभोग निवर्तित (२) अनाभोगनिवर्तित (३) एवं उपशान्त तथा (४) अनुपशान्त रूप से भी क्रोध चार प्रकार का कहा गया है।
१) आभोग निवर्तित - पुष्ट कारण होने पर यह सोच कर कि ऐसा किये बिना इसे शिक्षा नहीं मिलेगी ऐसा क्रोध किया है वह आभोग निवर्तित क्रोध है । अथवा क्रोध का दुष्परिणाम जानता हुआ भी क्रोध करता है वह आभोग निवर्तित है ।
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२) अनाभोग निवर्तित- गुण-दोष का विचार किये बिना ही क्रोध करता है उसे अनाभोग निवर्तित
कहते है।
संदर्भ गाथा - १५३ से १६५ तक
३) उपशान्त- जो क्रोध सत्ता में हो लेकिन उदयावस्था में न हो वह उपशान्त क्रोध है।
४) अनुपशान्त- उदयावस्था में रहा हुआ क्रोध अनुपशान्त है।