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९) आख्यायिका निःसृत- कहानी वगैरह कहते समय उस में गप्प लगाना ।
१०) उपघात निःसृत- प्राणियों की हिंसा के लिए बोला गया असत्य वचन । जैसे- भले आदमी को भी चोर कह देना।
काययोग के सात भेद हैं।
१) औदारिक शरीर काययोग- काय का अर्थ है समूह । औदारिक शरीर पुद्गल स्कन्धों का समूह है, इसलिये काय है। इस में होनेवाले व्यापार को औदारिक शरीर काययोग कहते हैं। यह योग पर्याप्त तिर्यंच और मनुष्यों को होता है।
२) औदारिक मिश्र शरीर काय योग- वैक्रिय आहारक और कार्मण के साथ मिले हुए औदारिक को औदारिक मिश्र कहते हैं। औदारिक मिश्र के व्यापार को औदारिक मिश्र शरीर काययोग कहते हैं।
३) वैक्रिय शरीर काययोग - वैक्रिय शरीर पर्याप्ति के कारण पर्याप्त जीवों के होनेवाला वैक्रिय शरीर का व्यापार वैक्रिय शरीर काययोग है।
४) वैक्रिय मिश्र शरीर काययोग - देव और नारकी जीवों के अपर्याप्त अवस्था में होनेवाला काय योग वैक्रिय मिश्र शरीर काय योग है। यहाँ वैक्रिय और कार्मण की अपेक्षा मिश्र योग होता है।
५) आहारक शरीर काययोग- आहारक शरीर के द्वारा पर्याप्त जीवों को आहारक शरीर काय योग होता
६) आहारक मिश्र शरीर काययोग - जिस समय आहारक शरीर अपना कार्य करके वापिस आकर औदारिक शरीर में प्रवेश करता है उस समय आहारक मिश्र शरीर काय योग होता है।
७) तैजस कार्मण शरीर योग - विग्रह गति में तथा सयोगी केवलि को समुद्धात के तीसरे चौथे और पाँचवें समय में तैजस कार्मण शरीर योग होता है । तैजस और कार्मण सदा एक साथ रहते हैं, इसलिए उनके व्यापार रूप काय योग को भी एक ही माना है।
व्यवहार भाषा- असत्यामृषा के अन्य बारह भेद भी पाये जाते हैं।
१) आमंत्रणी - आमन्त्रण करना । जैसे- हे देवदत्त ! इत्यादि ।
२) आज्ञापनी - दूसरे को किसी कार्य में प्रेरित करनेवाली भाषा आज्ञापनी कहलाती है। जैसे- 'जाओ अमुक कार्य करो' इत्यादि ।
३) याचनी- याचना करने के लिए कही जाने वाली भाषा याचनी है |
४) पृच्छनी- अज्ञात तथा संदिग्ध पदार्थों को जानने के लिए प्रयुक्त भाषा पृच्छनी कहलाती है।
५) प्रज्ञापनी - विनीत शिष्य को उपदेश देने रूप भाषा प्रज्ञापनी है। जैसे- 'प्राणियों की हिंसा से निवृत्त पुरुष भवान्तर में दीर्घायु और निरोग होता है'।
६) प्रत्याख्यानी - निषेधात्मक भाषा ।
७) इच्छानुलोमा - दूसरे को इच्छा का अनुसरण करना । जैसे- किसी के द्वारा पूछे जाने पर उत्तर देना कि- जो तुम करते हो वह मुझे भी अभीष्ट है।
८) अनभिगृहीता - प्रतिनियत (निश्चित ) अर्थ का ज्ञान न होने पर उसके लिए पूछना ।
९) अभिगृहीता - प्रतिनियत अर्थ का बोध करानेवाली भाषा अभिगृहीता है।