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________________ 26 १) उत्पन्न मिश्रिता- संख्या पूरी करने के लिए नहीं उत्पन्न हुओं के साथ उत्पन्न हुओं को मिला देना । जैसे- किसी गांव में कम या अधिक बालक उत्पन्न होने पर भी 'दस बालक उत्पन्न हुए' यह कहना । २) विगत मिश्रिता - इसी प्रकार मरण के विषय में कहना । ३) उत्पन्नविगत मिश्रिता- जन्म और मृत्यु दोनों के विषय में अयथार्थ कथन। ४) जीवमिश्रिता- जीवित तथा मरे हुए बहुत शंख आदि के ढेर को देखकर यह कहना - 'अहो ! यह कितना बडा जीवों का ढेर है'। जीवितों को लेकर सत्य तथा मरे हुओं को लेने से असत्य होने से यह भाषा जीवमिश्रिता सत्यामृषा है। ५) अजीव मिश्रिता - उसी राशि को अजीवों का ढेर बताना । ६) जीवाजीव मिश्रिता - उस राशि में अयथार्थ रूप से यह बताना कि इतने जीव हैं और इतने अजीव । ७) अनन्त मिश्रिता - अनन्तकायिक तथा प्रत्येक शरीरी वनस्पति काय के ढेर को देखकर कहना कि"यह अनन्तकाय का ढेर है'। ८) प्रत्येक मिश्रिता - उसी ढेर को कहना कि यह प्रत्येक वनस्पति काय का ढेर है । ९) अद्धा मिश्रिता- दिन या रात कारण कोई दिन रहते कहे- उठो रात वगैरह काल के विषय में मिश्रित वाक्य बोलना । जैसे- जल्दि के गई। अथवा रात रहते कहे- सूरज निकल आया । १०) अद्धाद्धा मिश्रिता- दिन या रात के एक भाग को अद्धाद्धा कहते हैं। उन दोनों के लिए मिश्रित वचन बोलना अद्धाद्धा मिश्रित है, जैसे- जल्दी करने वाला कोई मनुष्य दिन के पहले पहर में भी कहे- दोपहर हो गई। असत्य वचन को मृषावाद कहते हैं। इसके दस प्रकार है १) क्रोध निःसृत- जो असत्यवचन क्रोध में बोला जाय । जैसे क्रोध में कोई दूसरें को दास न होने पर भी दास कह देता है। २) मान निःसृत- मान अर्थात् घमण्ड में बोला हुआ वचन । जैसे- घमण्ड में आकर कोई गरीब भी अपने को धनवान कहने लगता है। ३) माया निःसृत- कपट से अर्थात् दूसरे को धोका देने के लिए बोला हुआ झूठ। ४) लोभ निःसृत- लोभ में आकर बोला हुआ वचन । जैसे कोई दुकानदार थोडी कीमत में खरीदी हुई वस्तु को अधिक मूल्य की बता देता है। ५) प्रेम निःसृत - अत्यन्त प्रेम में निकला हुआ वचन । जैसे- प्रेम में आकर कोई कहता है- मैं तो आपका दास हूँ। ६) द्वेष निःसृत- द्वेष से निकला हुआ वचन । जैसे- द्वेष में आकर किसी को भी निर्गुणी कह देना। ७) हास निःसृत - हंसी में झूठ बोलना । ८) भय निःसृत- चोर वगैरह से डरकर असत्य वचन बोलना।
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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