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१) उत्पन्न मिश्रिता- संख्या पूरी करने के लिए नहीं उत्पन्न हुओं के साथ उत्पन्न हुओं को मिला देना । जैसे- किसी गांव में कम या अधिक बालक उत्पन्न होने पर भी 'दस बालक उत्पन्न हुए' यह कहना ।
२) विगत मिश्रिता - इसी प्रकार मरण के विषय में कहना ।
३) उत्पन्नविगत मिश्रिता- जन्म और मृत्यु दोनों के विषय में अयथार्थ कथन।
४) जीवमिश्रिता- जीवित तथा मरे हुए बहुत शंख आदि के ढेर को देखकर यह कहना - 'अहो ! यह कितना बडा जीवों का ढेर है'। जीवितों को लेकर सत्य तथा मरे हुओं को लेने से असत्य होने से यह भाषा जीवमिश्रिता सत्यामृषा है।
५) अजीव मिश्रिता - उसी राशि को अजीवों का ढेर बताना ।
६) जीवाजीव मिश्रिता - उस राशि में अयथार्थ रूप से यह बताना कि इतने जीव हैं और इतने अजीव । ७) अनन्त मिश्रिता - अनन्तकायिक तथा प्रत्येक शरीरी वनस्पति काय के ढेर को देखकर कहना कि"यह अनन्तकाय का ढेर है'।
८) प्रत्येक मिश्रिता - उसी ढेर को कहना कि यह प्रत्येक वनस्पति काय का ढेर है ।
९) अद्धा मिश्रिता- दिन या रात कारण कोई दिन रहते कहे- उठो रात
वगैरह काल के विषय में मिश्रित वाक्य बोलना । जैसे- जल्दि के गई। अथवा रात रहते कहे- सूरज निकल आया ।
१०) अद्धाद्धा मिश्रिता- दिन या रात के एक भाग को अद्धाद्धा कहते हैं। उन दोनों के लिए मिश्रित वचन बोलना अद्धाद्धा मिश्रित है, जैसे- जल्दी करने वाला कोई मनुष्य दिन के पहले पहर में भी कहे- दोपहर हो गई।
असत्य वचन को मृषावाद कहते हैं। इसके दस प्रकार है
१) क्रोध निःसृत- जो असत्यवचन क्रोध में बोला जाय । जैसे क्रोध में कोई दूसरें को दास न होने पर भी दास कह देता है।
२) मान निःसृत- मान अर्थात् घमण्ड में बोला हुआ वचन । जैसे- घमण्ड में आकर कोई गरीब भी अपने को धनवान कहने लगता है।
३) माया निःसृत- कपट से अर्थात् दूसरे को धोका देने के लिए बोला हुआ झूठ।
४) लोभ निःसृत- लोभ में आकर बोला हुआ वचन । जैसे कोई दुकानदार थोडी कीमत में खरीदी हुई वस्तु को अधिक मूल्य की बता देता है।
५) प्रेम निःसृत - अत्यन्त प्रेम में निकला हुआ वचन । जैसे- प्रेम में आकर कोई कहता है- मैं तो आपका दास हूँ।
६) द्वेष निःसृत- द्वेष से निकला हुआ वचन । जैसे- द्वेष में आकर किसी को भी निर्गुणी कह देना। ७) हास निःसृत - हंसी में झूठ बोलना ।
८) भय निःसृत- चोर वगैरह से डरकर असत्य वचन बोलना।