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________________ परिशिष्ट-१ ४७ दासो दासीवतितो छत्तट्ठिय जो घरे य वत्थव्वो । आणं कोवेमाणो हंतव्वो बंधियव्वो य ॥९६॥ (बुद्धि) खद्धाऽऽदाणियगेहे पायस दट्ठण चेडरूवाई । पियरोभासण खीरे जाइय लद्धे य तेणा उ ॥९७॥ (क्षमा) पायसहरणं छेत्ता पच्चागय दमग असियए सीसं । भाउय सेणावति खिसणा (खिसणाहि) सरणागतो जत्थ ॥१८॥ (चूर्णा) वाओदएण राई णासइ कालेण सिगय पुढवीणं । णासइ उदगस्स सती, पव्वयराती उ जा सेलो ॥९९॥ (धात्री) दासो दासीपतिकः छत्रस्थितको यः गृहे च वास्तव्यः । आज्ञा कोपमानः हन्तव्यः बन्धितव्यश्च ॥१६॥ ऋद्धयादानिकस्य गृहे, पायसं दृष्ट्वा चेटरूपाणि । पित्रवभाषणं क्षीरं याचितः राद्धे च स्तेनास्तु ॥१७॥ पायसहरणं क्षेत्रात् प्रत्यागतद्रमकोऽसिना शीर्षम् । भ्राता सेनापतिः खिसना च शरणागतो यत्र ॥९८॥ वातोदकाभ्यां राजिनश्यति कालेन सिकतापृथ्वीनाम् । नश्यति उदके सति, पर्वतराजिस्तु यावत् शैलः ॥१९॥ कामना), प्रद्योत द्वारा (प्रतिमा सहित दासी) हरण, (उदायन और प्रद्योत के मध्य) भयङ्कर युद्ध, (पराजित प्रद्योत को बन्दी बनाना, पर्यषणा के दिन बन्दी राजा प्रद्योत द्वारा कहना) आज मेरा उपवास है, (बन्दी बनाते समय उसके मस्तक पर अङ्कित) दासीपति (के स्थान पर सुवर्णपट्ट बाँध देने से) पट्टबद्ध राजा हो गया, जिस प्रकार घर पर उपस्थित को क्षमा कर देता है, उसी प्रकार क्रोधित होकर हनन और बन्धन नहीं करना चाहिए ॥९३-९६।। समृद्ध व्यक्ति के घर में क्षीरान्न देखकर नौकर रूप द्रमक के पुत्र द्वारा, पिता से क्षीरान्न खाने के लिए कहना, माँगने पर उस (पिता के द्वारा) प्राप्त किया गया । चोरों द्वारा क्षीरान्न हरण, (तृणपुल आदि काटकर) वापस लौटा हुआ द्रमक (चोरों के सेनापति का) सिर काट लेता है । (सेनापति का) भाई सेनापति नियुक्त किया गया, (सेनापति की मृत्यु का प्रतिशोध न लेने पर आत्मीय जनों का) कुपित होना, (सेनापति द्वारा द्रमक को बाँधना, उससे पूछने पर कि उसे किस प्रकार मारा जाय द्रमक कहता है) जिस प्रकार शरणागत को (मारा जाता है) ॥९७-९८॥ ___ बालू में (खींची गई) लकीर हवा और जल से नष्ट हो जाती है, पृथ्वी में (शरद् ऋतु में) पड़ी हुई दरार वर्षा होने पर नष्ट हो जाती है, परन्तु पर्वत में पड़ी हुई दरार शैल (की स्थिति) पर्यन्त बनी रहती है ॥१९॥
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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