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________________ परिशिष्ट - १ कामं तु सव्वकालं पंचसु समितीसु होइ जइयव्वं । वासासु अहीगारो बहुपाणा मेइणी जेणं ॥८८॥ ( देही) भासणे संपाइम (संपाति ) वहो दुण्णेओ नेहछेओ ( छेदु ) तइयाए । इरियचरिमासु दोसु वि अपेहअपमज्जणे पाणा ॥८९॥ ( धात्री ) मणवयणकायगुत्तो दुच्चरियाई तु खिप्पमालोए । अहिगरणम्मि दुरूयग पज्जोए चेव दमए य ॥९०॥ ( चूर्णा) एगबइल्ला भंडी पासह तुब्भे य डज्झ खलहाणे । हरणे झामण जत्ता, भाणगमल्लेण घोसणया ॥ ९१ ॥ (गौरी) कामं तु सर्वकालं पञ्चसु समितिषु भवति यतितव्यम् । वर्षासु अधिकारः बहुप्राणा मेदिनी येन ॥८८॥ भाषणे सम्पातिमवधो दुर्ज्ञेयः स्नेहछेदस्तृतीये । ईर्यारिमयोर्द्वयोरपि अप्रेक्षाप्रमार्जने प्राणाः ॥८९॥ मनोवचनकायगुप्तः दुश्चरितानि तु क्षिप्रमालोचयेत् । अधिकरणे दुरूतकः प्रद्योतश्चैव द्रमकश्च ॥ ९० ॥ एकबलीवर्दा गन्त्री पश्यत, यूयमपि दह्यमानखलधान्यान् । हरणे ध्यापनं (दहनं) भाणकमल्लेन घोषणका ॥९१॥ ४५ में सभी श्रमणों को पाँच समितियों का सर्वदा यत्नपूर्वक आचरण करना चाहिए, पृथ्वी वर्षाऋतु बहुत प्राणों की सत्ता वाली हो जाती है (इसलिए वर्षाऋतु में श्रमण को अत्यधिक यत्नपूर्वक संयमपालन करना चाहिए ) ॥ ८८ ॥ भाषण समिति से (युक्त न होने पर) उड़ने वाले दुर्ज्ञेय (जीवाणुओं) का वध, तृतीय (एषणा समिति से युक्त न होने पर) दुर्ज्ञेय अप्काय जीवों का वध, ईर्यासमिति और अन्तिम दो (आदाननिक्षेप और परिष्ठापना समिति से युक्त न होने पर) बिना देखे, प्रमार्जित किये आचरण करने पर जीवों का वध होता है ॥ ८९ ॥ जो कुत्सित आचरण है उनकी शीघ्र आलोचना मन, वचन और काय गुप्ति से करना चाहिए, पापजनक क्रिया या असंयमित आचरण में द्विरुक्तक, राजाप्रद्योत और द्रमक का दृष्टान्त ( दिया जाता ॥९०॥ (द्विरुक्तक का कथन) “देखो ! एक बैलवाली गाड़ी !” (कुम्भकार का प्रत्युत्तर) "तुम लोग भी जल रहे खलिहान (को देखो ) ।" (बैल) हरने पर प्रयत्न से ( खलिहान) जला दिया, (ग्रामवासियों
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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