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________________ प्रकाशकीय • 'श्रुत की सुरक्षा के साथ व्यापक अध्ययन एवं संशोधन में सहभागी होना' हमारा मुद्रालेख है । इस शास्त्र के सम्पादन में कल्पनिर्युक्ति, प्राचीन और नवीन अवचूर्णि के शब्दकोश एवं धातुकोश का संकलन किया है । इसकी उपयोगिता एवं मुद्रण सम्बन्धी मर्यादाओं को देखते हुए शब्दकोश एवं धातुकोश का परिशिष्ट डीजीटल रूप में (CD) सुरक्षित रखा है । आ. श्री माणिक्यशेखर सू.कृत कल्पनिर्युक्ति की पाण्डुलिपि के छायाचित्र भी CD में हैं ताकि कोई विद्वान् मूलप्रत का भी अवगाहन कर सके । जिज्ञासुओं के लिये इसकी कॉपी श्रुतभवन संशोधन केन्द्र से उपलब्ध हो सकती है । श्रुतभवन संशोधन केन्द्र की गतिविधि में विशेषतः विद्वान् संशोधक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय मुनिचंद्रसूरिजीम., प्राचीन श्रुतसंरक्षक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमचंद्रसूरिजी म., विद्वान् संशोधक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय विजयशीलचंद्रसूरिजी म., सुविशालगच्छाधिपति पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय पुण्यपालसूरिजी म., उदारचेता पूज्य पंन्यासप्रवर श्री वज्रसेनविजयजी गणिवर के आशिष, मार्गदर्शन एवं सहायता प्राप्त होते रहते हैं । हम उनके चरणों में नतमस्तक होकर वंदन करते हैं । ‘कल्पनिर्युक्ति' एक छेद ग्रन्थ है । परम्परा में वर्णित अधिकृत महात्मा ही इसके पठन के अधिकारी है । पाठकवर्ग इस मर्यादा का ख्याल करके शास्त्र में प्रवेश करें । श्रुतभवन संशोधन केन्द्र की समस्त गतिविधियों के मुख्य आधार स्तंभ मांगरोळ (गुजरात) निवासी श्री चंद्रकलाबेन सुंदरलाल शेठ परिवार एवं भाईश्री ( ईन्टरनेशनल जैन फाऊन्डेशन, मुंबई) के हम सदैव ऋणी है। दिनांक ६-१-१२ भरतभाई शाह मानद अध्यक्ष
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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