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________________ 15 ९. 'ठवणा अर्थात् स्थापना।' ऋतुबद्ध काल की अपेक्षा चातुर्मास काल की मर्यादा भिन्न होती है। जिसकी स्थापना पर्युषणा में की जाती है, इसलिये पर्युषणा का नौवाँ पर्याय ठवणा है। १०. 'जेट्ठावग्गह अर्थात् ज्येष्ठावग्रह ।' ऋतुबद्ध काल की अपेक्षा चातुर्मास काल का क्षेत्रावग्रह __ अधिक होता है । ऋतुबद्ध काल में एक-एक माह का क्षेत्रावग्रह होता है, जब कि चातुर्मास में वह चार माह का होता हैं । अतः पर्युषणा का दसवाँ पर्याय जेट्ठावग्गह है। चातुर्मास का प्रारम्भ आषाढी पूर्णिमा से होता है । इस तिथि तक साधु चातुर्मास योग्य क्षेत्र में पहुँच जाते हैं, तो आषाढ़ वदि पञ्चमी से पर्युषणा कल्प अर्थात् वर्षावास का प्रारम्भ हो जाता है । योग्य क्षेत्र न मिलने पर पाँच दिन अन्वेषण करके आषाढ़ वदि दसमी, से वर्षावास का प्रारम्भ होता है । इस प्रकार पाँच-पाँच दिन की मर्यादा को बढ़ाते श्रावण वदि अमावास्या तक योग्य क्षेत्र का अन्वेषण होता है । इसके बाद जिस क्षेत्र में हो वहीं वर्षावास करने की मर्यादा है । यहाँ तक की वृक्ष के नीचे भी वर्षावास कर लेना चाहिए। भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी अन्तिम तिथि है । पर्युषणा कल्प इस तिथि के बाद नहीं होता। तात्पर्य यह है कि, चातुर्मास रूप पर्युषणा कल्प का प्रारम्भ आषाढ़ी पूर्णिमा से श्रावण वदि अमावास्या तक अनुकूल तिथि में हो सकता है, भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी की रात्रि बीत जाने पर नहीं हो सकता । पर्यषणा पद के इन पर्यायवाची शब्दों में अर्थ से भेद नहीं है। निर्यक्ति में निक्षेप के द्वारा अर्थ का विवरण किया जाता है। ५४वीं गाथा में पर्यषणा शब्द के स्थापना पर्याय को उदाहरण बनाकर उसके अर्थ का विवरण किया है । चातुर्मास में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की स्थापना होती है। स्थापना शब्द के छ: निक्षेप हैं। नाम-स्थापनाद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव । नाम में की गई चातुर्मास की स्थापना को नामस्थापना कहते हैं । जिसका चातुर्मास इस तरह का नाम स्थापन किया जाय उसे नाम-स्थापना कहते हैं। किसी वस्तु में की गई चातुर्मास की स्थापना को स्थापना-स्थापना कहते हैं । चातुर्मास में शिष्यादि सचित्त द्रव्य ग्रहण का निषेध है, अचित्त घास इत्यादि का स्वीकार है । इस तरह द्रव्य में चातुर्मास की स्थापना को द्रव्यस्थापना कहते हैं । द्रव्य में चातुर्मास की स्थापना को द्रव्यस्थापना कहते हैं। जिस क्षेत्र में चातुर्मास की स्थापना की है, वहाँ से ढ़ाई कोस तक के क्षेत्र में आहार आदि के लिये जाना-आना होता है । इसे क्षेत्रस्थापना कहते हैं । जिस तिथि से चातुर्मास की स्थापना की जाती है, उस तिथि से लेकर चातुर्मास समाप्ति तक के काल को कालस्थापना कहते हैं । कषायादि औदयिक भावों का त्याग करके क्षायोपशमिक भाव में स्थिर रहना यह भावस्थापना है ।१ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की स्थापना तीन अर्थ को लेकर होती है-सम्बन्ध, कारण और आधार । यह ये अर्थ क्रमशः षष्ठी, तृतीया और सप्तमी विभक्ति से प्राप्त होते हैं । द्रव्यादि के १. सन्दर्भ-क.नि. ३-४ ।
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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