SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-७ कथा-सारांश १२ मरुक नामक व्यक्ति के पास एक बैल था । वह उसे जोतने के लिए खेत पर ले गया । जोतते-जोतते बैल थककर गिर पड़ा और उठ न सका । तब मरुक ने उसे इतना मारा कि मारतेमारते पैरा या चाबुक टूट गया, तब भी बैल नहीं उठा । एक क्यारी के ढेल से मारा, फिर भी नहीं उठा । चार क्यारियों के ढेलों से मारा, फिर भी नहीं उठा । तब उसने बैल पर ढेलों का ढेर कर दिया और बैल मर गया । गोवधजनित पाप की विशुद्धि के लिए वह मरुक किसी ब्राह्मण के पास गया । सारी बात बताकर उसने अन्त में कहा कि, "आज भी बैल के ऊपर मेरा क्रोध शान्त नहीं हुआ ।" ब्राह्मण ने कहा, “तुम अतिक्रोधी हो, तुम्हारी शुद्धि नहीं है, तुम्हें प्रायश्चित्त नहीं दूँगा ।" १०५ इस प्रकार साधु को भी क्रोध नहीं करना चाहिए । यदि क्रोध उत्पन्न भी हो तो वह जल में पड़ी लकीर के समान हो । जो क्रोध पुनः एक पक्ष में, चातुर्मास में और वर्ष में उपशान्त न हो उसे विवेक द्वारा शान्त करना चाहिए । ५. मान कषाय विषयक अत्यहङ्कारिणी भट्टा दृष्टान्त वणिधूयाऽच्चकारिय भट्टा अट्ठसुयमग्गओ जाया । वरग पडिसेह सचिवे, अणुयत्तीह पयाणं च ॥ १०४॥ विचिंत विगालपडिच्छणा य दारं न देमि निवकहणा । खिसा णिसि निग्गमणं चोरा सेणावई गहणं ॥ १०५ ॥ नेच्छइ जलूगवेज्जग गहणं तम्मि य अणिच्छमाणम्मि । गाहावइ जलूगा थणभाउग कहण मोयणा ॥ १०६ ॥ सयगुणसहस्सपागं, वणभेसज्जं वतीसु जायणता । तिक्खुत्त दासीभिंदण ण य कोवो सयं पदाणं च ॥१०७॥ द० नि०१३ | कथा - सारांश १ -१४ क्षितिप्रतिष्ठित नगर में जितशत्रु राजा था, धारिणी देवी उसकी रानी और सुबुद्धि उसका मन्त्री था। वहाँ धन नामक श्रेष्ठी था, भट्टा उसकी पुत्री थी । माता - पिता ने सब परिजनों से कह दिया था, भट्टा जो भी करे, उसे रोका न जाय, इसलिए उसका नाम 'अच्चंकारिय' भट्टा पड़ा । १२. द०चू०, पूर्वोक्त, पृ० ६१ एवं नि०भा०चु०, पूर्वोक्त, पृ० १४९- १५० । १३. द०चू०, पूर्वोक्त, पृ० ४८६ । १४. द०चू०, पूर्वोक्त, पृ० ६१ एवं नि० भा०चू०, पूर्वोक्त, पृ० १५० १५१ ।
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy