________________
१०४
कल्पनियुक्तिः
३. भृत्य द्रमक-वृत्तान्त
खद्धाऽऽदाणियगेहे पायस दट्ठण चेडरूवाइं। पियरो भासण खीरे जाइय लद्धे य तेणा उ ॥९७॥ पायसहरणं छेत्ता पच्चागय दमग असियए सीसं ।
भाउय सेणावति खिसणा य सरणागतो जत्थ ॥१८॥-द० नि० । कथा-सारांश
द्रमक नामक नौकर का पुत्र, स्वामी के घर में बना क्षीरान्न देखकर, उसे माँगने लगा। नौकर गाँव में से दूध और चावल माँगकर लाया और पत्नी को क्षीरान्न बनाने के लिए कहा। निकट के गाँव में ठहरा हुआ चोरों का दल गाँव लूटने के लिए आया और उस गरीब के घर से क्षीरान्न से भरी थाली उठा ले गया । उस समय वह नौकर खेत पर गया हुआ था । खेत से तृण काटकर लौटते समय वह यह सोचते हुए घर आया कि, 'आज बच्चे के साथ क्षीरान्न खाऊँगा।' बच्चे ने क्षीरान्न की चोरी के बारे में बताया । द्रमक तृण-पूल रखकर क्रोध से भरकर चला । चोरों के सेनापति के सामने क्षीरान्न की थाली देखी, सेनापति अकेला था । चोर दुबारा गाँव में चले गये थे । द्रमक ने तलवार से उसका सिर काट लिया । सेनापति का वध हो जाने से चोर भी भाग गये । सेनापति का छोटा भाई नया सेनापति बना । सेनापति की माँ, बहन और भाभी उसकी निन्दा करती थीं, "भाई के वैरी के जीवित रहने पर तुम्हारे सेनापतित्व का धिक्कार है।" सेनापति क्रोध में भरकर गया और द्रमक को जीवित पकड़कर लाया । उसने द्रमक से पूछा, “हे ! हे ! भ्रातृवैरी ! किस अस्त्र से तुम्हें मारूँ ?" द्रमक ने उत्तर दिया, "जिससे शरणागत पर प्रहार करते हैं, उससे प्रहार करो ।" द्रमक के इस उत्तर पर वह सोचने लगा-शरणागत पर प्रहार नहीं किया जाता है और उसने द्रमक को मुक्त कर दिया।
यदि धर्म के उस अज्ञानी ने भी मुक्त कर दिया तो पुनः परलोक से भयभीत वात्सल्य के जानकार क्यों नहीं सम्यक्त्व का पालन करेंगे ? ४. क्रोध कषाय विषयक मरुक दृष्टान्त
अवहंत गोण मरुए चउण्ह वप्पाण उक्करो उवरिं। छोढुं मए सुवट्ठाऽतिकोवे णो देमो पच्छित्तं ॥१०३॥-द० नि०११ ।
९. द०चू०, पूर्वोक्त, पृ० ४८५ । १०. द०चू०, पूर्वोक्त, पृ० ६१ एवं नि०भा०चू०, पूर्वोक्त, पृ० १४७-१४८ । ११. द०चू०, पूर्वोक्त, पृ० ४८ ।