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________________ परिशिष्ट-७ कल्पनियुक्ति में इङ्गित दृष्टान्त (सन्दर्भः दशाश्रुतस्कन्धनियुक्तिः एक अध्ययन) (सं० डॉ० अशोक कुमार सिंह) जैनपरम्परा में प्राचीन काल से ही जन-जन के अन्तर्मानस में धर्म, दर्शन और अध्यात्म के सिद्धान्तों को प्रसारित करने की दृष्टि से प्रसिद्ध कथाओं, विशेषतः धर्मकथाओं का आश्रय लिया गया है। जैन धर्मकथा साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता उसमें सत्य, अहिंसा, परोपकार, दान, शील आदि सद्गुणों की प्रेरणायें सन्निहित होना है। धर्मकथा के विषय का प्रतिपादन करते हुए आचार्य हरिभद्र ने भी कहा है, "धर्म को ग्रहण करना ही जिसका विषय है, क्षमा, मार्दव, आर्जव, मुक्ति, तप, संयम, सत्य, शौच, आकिञ्चन्य, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य की जिसमें प्रधानता है, अणुव्रत, दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्डविरति, सामायिक, पौषधोपवास, उपभोग-परिभोग तथा अतिथिसंविभाग से जो सम्पन्न है, अनुकम्पा, अकामनिर्जरादि पदार्थों से जो सम्बद्ध है, वह धर्मकथा कही जाती है ।"१ प्राकृत गाथा-निबद्ध नियुक्तियों में सङ्केतित दृष्टान्त कथायें भी धर्मकथायें हैं। अधिकरण अर्थात् पाप के दुष्परिणाम, क्षमा का माहात्म्य और चारों कषायों-क्रोध, मान, माया और लोभ के दुष्परिणामों को बताने वाली कथाओं का सङ्केत कर अधिकरण, कषायादि से विरत रहने एवं क्षमा आदि धर्मों का पालन करने की प्रेरणा दी गई है । दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति में अधिकरण अर्थात् कलह, पाप, दुष्प्रवृत्ति आदि सम्बन्धी द्विरुक्तक, चम्पाकुमारनन्दी और चेट द्रमक के दृष्टान्तों में असंयमी या गृहस्थ जनों में परस्पर कलह और शत्रुता के कारण वध, खलिहान जलाने तथा युद्ध में बन्दी बनाने जैसे प्रतिशोधात्मक कृत्य किये जाते हैं। फिर भी जब एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष से क्षमायाचना की जाती है तो दूसरा पक्ष उसके शत्रुतापूर्ण कृत्यों और अक्षम्य अपराध को अनदेखा कर क्षमा प्रदान कर देता है । १. समराइच्चकहा, पूर्वार्द्ध (प्राकृत) आचार्य हरिभद्र, हि० अनु० डॉ० रमेशचन्द्र जैन, ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला, प्रा-प्र० २, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली १९९३, पृ० ४ । २. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति (मूल), सं० विजयामृतसूरि, 'नियुक्तिसंग्रह' हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला १८९, लाखाबावल १९८९, गाथा ९०-११०, पृ० ४८५-८६ ।
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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