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लेकर सुगन्धित द्रव्य बहुविध धूप मनहर कर लिया।
खेय वेश्वानर के माहीं कर्म आठौ हर लिया।। साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ऊँ ह्रीं अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यो अष्टकर्म विनाशनाय धूपं निर्वपामीति
स्वाहा।।7॥
बादाम श्रीफल आम केला दाडिमादिक फल भले। थालभर छोड़े चरण में भ्रमण भव का सब टले।।
साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ॐ ह्रीं अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति
स्वाहा।।8।
नीर चन्दन धवल अक्षत पुष्प मनहर लाइया। पकवान दीपक धूपफल सब अध्य चर्ण चढ़ाइया।।
साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ऊँ ह्रीं अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यो अनध्यपद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।9।
अथ प्रत्येक पूजा (छन्द कामिनी)
जीव त्रस थावारा आप सम जानते। देय दुक्ख ना कभी योग त्रय हानते।। होय महाव्रत यह साधु बड़े भाग के। पाय मोक्षनार संग राग को त्याग के।। ॐ ह्रीं श्री अहिंसा महाव्रत मूल गुणधारक साधु देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।।। नष्ट हो शरीर ना असत्य कभी भासते। हो भला जीव जिन वाणी को प्रकाशते।।
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