________________
चन्द्र सम उज्वल अखंडित तंदुलों को लीजिए। अक्षय निधि के प्राप्ति हेतु पुंज गुरु ढिग कीजिए।।
साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ॐ ह्रीं श्री अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति
स्वाहा।।3।।
चंपा चमेली कुन्द मरुवा मोगरा बहु फूल ले। कुसुम इषु के नाश हेतु, चरण छोडू हुं भले।।
साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ऊँ ह्रीं श्री अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यः काम बाण विनाशनाय पुष्पं
निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
पूरी पकोड़ी खीर गूंजा और मोती चूर ले। भेंट कर सम्यक गुरु के सुख तभी भरपूर ले।। साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ॐ ह्रीं अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।5॥
शुद्ध घृत करपूर आदिक रत्न का दीपक करूं।
आरती कर साधुवरकी मोह राजा को हरूं। साधु हो तुम साधना में साधते निज आत्मा।
हम पूजते पद युगल नित प्रति पद लहूं परमात्मा।। ऊँ ह्रीं अष्टाविंशति मूलगुण धारक साधु परमेष्ठिभ्यो: मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥
996