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होय महाव्रत यह साधु बड़े भाग के। पाय मोक्षनार संग राग को त्याग के। ऊँ ह्रीं श्री सत्य महाव्रत धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥ दे बिना न ले कभी न याचना को ठानते। हो विरक्त नगन तन आत्म गुण जानते।। होय महाव्रत यह साधु बड़े भाग के। पाय मोक्षनार संग राग को त्याग के॥ ऊँ ह्रीं श्री अचौर्यं महाव्रत धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥3॥ नारि चार जाति जान साधु नित्य टारते। पाय शील रत्न शुभ काम का विडारते।। होय महाव्रत यह साधु बड़े भाग के। पाय मोक्षनार संग राग को त्याग के॥ ऊँ ह्रीं श्री ब्रह्मचर्य महाव्रत धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।4।। त्याग संग दोयविध बाह्य अभ्यंतरा । छोड़ मोह जाल का लेय समता धरा ।। होय महाव्रत यह साधु बड़े भाग के। पाय मोक्षनार संग राग को त्याग के ऊँ ह्रीं श्री परिग्रह त्याग महाव्रत धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥5॥
पंच समिति (जोगीराशा )
हस्त चार लख पद को धारें उर अनुकंपा लावे | त्रस थावर की रक्षा करते समता भाव बढ़ावे ।। ईर्या समिति पाले साधु मन वच काय त्रियोगा। अष्ट द्रव्य से पूजो याते नष्ट होय भव रोगा ।
ऊँ ह्रीं श्री ईर्या समिति परिपालक साधु देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
सब जीवों से हित मिल बोले खेद नहीं उपजावे । दे उपदेश रु अघ को टाले शिवमारग दर्शावे ॥ भाषा समिति पाले साधु मन वच काय त्रियोगा। अष्ट द्रव्य से पूजो याते नष्ट होय भव रोगा।
ऊँ ह्रीं श्री भाषा समिति धारक साधु देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
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