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दोहा
ये षट् आवश्यक करे सूरि पद को धार। पूरण अध्य चढ़ाय कर होवे भवदधिपार।। ऊँ ह्रीं कार्योत्सर्गावश्यक प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।
पंचाचार 5 अध्यं (सुन्दरी)
तत्व जीव अजीव सु जानते, ध्याय निज में निज पहचानते।
होय ज्ञानाचार सु जानिए, पूज आचारज पद मानिए।। ऊँ ह्रीं ज्ञानाचार प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
कहत तत्व जिनेश्वर भाव से, धरत श्रद्धा सूरि स्वभाव से।
होय दर्शन चार सु जानिए, पूज आचारज पद मानिए।। ऊँ ह्रीं दर्शनाचार प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
त्याग सर्व सुसंग विराजते, पाल समिति गुप्ति सुराजते।
कहत चारित चार सु जानिए, पूज आचारज पद मानिए।। ऊँ ह्रीं चारित्राचार प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
कर्मनाशक शक्ति बढ़ावते, धरत संयम तप अति चाव से।
कहत वीर्याचारसु जानिए, पूज आचारज पद मानिए।। ऊँ ह्रीं वीर्याचार प्रतिपालकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।4।।
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