________________
सेव गुण धार अरु गुरुजनों की ठानिए। देवश्रुत सेव कर मोक्ष मग आनिए।। सूरि महाराज को ध्याय शुभ भाव सो। नीर गन्ध अक्षतादि पूजते चाव सो।। ऊँ ह्रीं वैयावृत तप धारकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
रात दिवस पाठ स्वाध्याय में लीन हो। प्रश्न गुरु ठान बहु चिन्तवना कीन हो।।
सूरि महाराज को ध्याय शुभ भाव सो। नीर गन्ध अक्षतादि पूजते चाव सो।। ऊँ ह्रीं स्वाध्याय तप धारकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।10॥
आय उपसर्ग को हर्ष से सहत है। त्याग मन मोह निजआत्म को भजत हैं। सूरि महाराज को ध्याय शुभ भाव सो। नीर गन्ध अक्षतादि पूजते चाव सो।। ऊँ ह्रीं व्युक्तर्ग तप धारकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥11॥
ध्यान जब धारते हो अडोल जाप में। चिन्तवे असार सब लीन हो आप में।। सूरि महाराज को ध्याय शुभ भाव सो। नीर गन्ध अक्षतादि पूजते चाव सो।। ऊँ ह्रीं ध्यानतप धारकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।12।
कथित तप द्वादशं धारते वीर ही। पाय नहीं मोहि जीव होत है अधीर ही।। सूरि महाराज को ध्याय शुभ भाव सो। नीर गन्ध अक्षतादि पूजते चाव सो।। ऊँ ह्रीं द्वादश तप धारकाचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
977