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जय द्वितीय मयंक समान प्रभु, बढ़ चले आप त्रय ज्ञान विभु ॥9॥ जय अथिर लखा संसार खार, वैराग्य हुआ तब सुखद सार। लौकान्तिक आये स्वर्ग ब्रह्म, संवोध पधारें जिन स ब्रह्म || 10 ॥ जय बैठ शिबिका गये अरण्य, कचलोच किये प्रभु धन्य धन्य । जय मनपर्य प्रभु प्रगटज्ञान, ,हो तपकर धर तुम शुक्लध्यान।।11।। जय घाति कर्म चक चूर किया, जय केवल ज्ञान सु आप लिया। जय समवसरण उपदेश देय, भवि जीवों को भव उद्धरेय ॥ 12 ॥ जय जन्म तने अतिशय दश है, जय केवल ज्ञान लहे दश है। जय देव चतुर्दश हर्ष करे, वसु प्रातिहार्य सुख सज्ज खरे।।13।।
जय नन्त चुष्टय आप गहै, प्रभु गुण छियालिस नित्य रहै। जय लक्षण सहसरु अष्ट शुद्ध, हो लसे आप में अति विशुद्ध ॥14॥ जय मोक्ष मार्ग के नेता हो, अरु कर्म शैल के भेत्ता हो। जय भूत भविष्यत् वर्तमान, पर्याय झलकति आप ज्ञान ।। 15॥ नहीं कवला हार सु आप लेय, सब जान पदारथ नित्य हेय। शिव रमणी के भर्तार आप, जय कर्म काटने को सुचाप || 16 जय सकल ज्ञेय के ज्ञाता हो, पर निजानन्द के पाता हो। हो देव मेरे हिए आन वसो, तब ध्यान धरे हम कर्म नसो॥17॥ तब गुण चिन्ते हम बार बार, जिससे टलती आपद अपार । प्रभु आप जगत के भूषण हो, अरु नाना रहित दूषण हो॥18॥ जय महिमा अगम अपार आप, जय शुद्ध चेतना करत जाप जय परमदेव परमातम हो, जय ध्याता ध्यान गुणातम हो|| 19 || जय हरि हर ब्रह्म आप कहैं, जय शंकर विष्णु नाम लहै। नवकेवल लब्धि आप लसे, जय ध्यान महा शुभ आप बसे ||20||
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