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जयमाला
दोहा
छह चालीस गुण को धरे, सकल प्रभु कहलाय। गाऊं अब जयमालिका दुरित महा मिटि जाय।।
त्रोटक
नहीं दोष अठारह है तुममे, अरहन्त देव हम कहत तुम्हें । जय ऊर्ध्व अधो अर मध्य तने, सब जव नमे तब भक्ति सने॥1॥ षट् मास पूर्व प्रभु गर्भ तने, अरु गर्भ रहे नव मास भने । जय रत्नसु वृष्टि कुवेर करे, जय नृप आंगण में मोद भरे।।2।। जय अष्ट कुमारी सु मात सेय, हर विधि से उनको मोद देय। जय जन्म हुआ प्रभु आप ज्ञान, घर घर में मंगल गाय गान || 3 || जय तीन लोक में हर्ष छाय, जय नर्क जीव समता लहाय । यह अतिशय प्रभुजी आप जान, नहीं होय अन्य प्राणी महान॥4॥ जय इन्द्र मोद धर बैठ नाग, ऐरावत ले परिवार भाग । इन्द्राणी जाय प्रसूति थान, प्रभु लेय गोद में हर्ष ठान।।5।। निज पति को दे सम सूर्य बाल, वह निरख कहै प्रभु है कमाल । जब तृप्त हुआ नहीं दर्श पाय, हज्जार नयन सु धर बनाय ||6||
कर तांडव नृत्य सु भक्ति धार, हर्षे शचीन्द्र मन में अपार । पग धरे छमा छम ठुमुक चाल, जय बजे घूंघरू के सु जाल॥7॥ फिर चढ़ गज मेरु शिखर जाय, अरु क्षीरोदधिका नीर लाय। तब न्हवन किया त्रैलोक्य राय, सिर कलश ढोल आनन्द पाय॥8॥ शची किया नेत्र अंजन सु आय, प्रभु वस्त्राभूषि दिये पिनाय।
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