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भ्रमण किया प्रभु भूल आप, फल पाया बहु जिस पुण्य पाप। अब हरो हमारी पीर नाथ, याते पकड़े प्रभु आप साथ॥21॥ जय स्याद्वाद शासन अनूप, नहीं बाधिक हो मिथ्या स्वरूप। सब विद्या के प्रभु आप ईश, जय पाप हरो मम हे जगी ॥22॥
तब नाम लेत सब विघ्न जाय, जय भूत प्रेत सब ही नशाय । संसार लखे यह अथिर रूप, दुख पाये जिससे त्रिजग भूप || 23 ||
हो परम देव गुण अपार, हम तुच्छ बुद्धि नहि लहत पार। पद पंकज में हो नमस्कार, जय 'सूरज' को प्रभु तार तार। 24।।
घत्ता
जय जय जयमाला परम रसाला गावें ध्यावें पाप हरे ।
नाशत भव ज्वाला गुण मणिमाला पावे सुक्ख अनन्त खरे ||
ऊँ ह्रीं षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अरहन्त परमेष्ठिभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
अडिल्ल
जो भव पूजे महा जिनेश्वर राय जी । पाप ताप अरु विघ्न टरे दुख दाय जी ।। पुत्र मित्र और सम्पत्ति हो अधिकाय जी । अनुक्रम से शिव नार वरे सुख दाय जी।।
॥ इत्याशीर्वाद ॥
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