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होत नहीं मल मूत्र जिन, निर्मल तन सुखदाय। ये अतिशय अरहन्त के पूजों अर्घ चढ़ाय
ऊँ ह्रीं मलमूत्र रहित अतिशय सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्य निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
समचतुरा संस्थान है घाट बाध नहीं होय। यह अतिशय तीजा कहा पूजो अर्घ संजोय।।
ऊँ ह्रीं समचतुर संस्थान अतिशय सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्य निर्वपामीति स्वाहा॥। 3 ॥
वज्र वृषभ नाराच हे सहनन उत्तम धाधार । यह अतिशय प्रभु के कहा पूजुं अर्घ उतार
ॐ ह्रीं वज्रवृषभनाराच सहनन अतिशय सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्य निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
सुरभित तन सुखदाय हैं यह अतिशय बतलाया।
अर्घ संजोऊं थाल भर पूजुं मन बच काय ।।
ऊँ ह्रीं सुगन्धित शरीर अतिशय सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्य निर्वपामीति स्वाहा।।5।
रूप महा सुन्दर घनों काम देव शर्माय
उत्तम अर्घ बनाय कर पूजूं हर्ष बढ़ाया।
ऊँ ह्रीं महारूपातिशय सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 6॥
आठ अधिक पुन इक सहस लक्षण गुणकी खान। पूजों अर्घ संजोय के होय कर्म की हान।।
ऊँ ह्रीं शुभ लक्षण अतिशय सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्य निर्वपामीति स्वाहा।।7।।
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