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देव महा सिद्ध का शर्ण हम ले लिया। मैं न[ त्रिकाल आप मोक्ष सुख पा लिया।।22।।
पंच महाव्रत पंच समीति को आदरे। करत वश अक्ष आचार पंच आचरे। देव महा सूरि की शर्ण हम ले लिया। मैं नमूं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ को लिया।।23।।
पालते षडावश्यक शेष गुण को धरे। पाल तीन गुप्ति सूरि मनमे कष्ट ना करे।। देव महा सूरि का शर्ण हम ले लिया। मैं नमू त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ को लिया।।24।।
पालते आचार आप शिष्य को पलावते। होय छत्तीस गुण सूरिं पद पावते।। देव महा सरि का शर्ण हम ले लिया। मैं नमं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ को लिया।।25।। ___हो उपाध्याय मुनि तपो व्रत आचरे। धरत महा सकल व्रत रोष तोष ना करे।। देव उपाध्याय की शर्ण हम ले लिया। मैं नमं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ को लिया।।26।।
अंग एकादर्श पूर्व चतुर्दश कहे। होत ज्ञान आपको नाम पाठक लहे।। देव उपाध्याय की शर्ण हम ले लिया। मैं नमूं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ को लिया।।27।
धन्य धन्य साधु अष्ट बीस गुण धारते। होत ना अधीर कभी मोह कर्म टारते। देव महासाधु की शर्ण हम ले लिया। मैं नम त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ को लिया।।28।।
जिन देव महा विम्बभी शोभते अपार ही। स्वर्ण रत्न उपल के होत निर्विकार ही।। देव जिन बिम्ब की शर्ण हम ले लिया। मैं नमूं त्रिकाल आप दर्श सुख पा लिया।।29॥
बिम्ब तीन लोक में अनादि आदि जानिए। है अगण्य जो लहे सदैव सिर नाइए। देव जिन बिम्ब की शर्ण हम ले लिया। मैं नमं त्रिकाल आप दर्श सुख पा लिया।।30।।
भवन त्रैलोक्य में ही असंख्या लहे। है अनादि आदि महादेव गणधर कहै।। देव जिन जिनालया हर्ष कर पजिया। मैं नमं त्रिकाल आप दर्श सुख पा लिया।।31।।
हम रत्न उपलमय शोभते महान ही। नमन करे बार बार होत कल्याण ही। देव जिन जिनालया हर्ष कर पूजिया। मैं नमूं त्रिकाल आप दर्श सुख पा लिया।।32॥
निकसि जिन वदन ते भव्य महाभाग से। झेल गणधर महा प्रकाशि अनुराग से।। मात जिन वाणि आप अगण्य जीव तारिया। मैं नमूं त्रिकाल आप ज्ञान शुद्ध धारिया।।33।। ___ होत सप्त भंग मय देवि निर्दोषिका। आदि अन्त तक एक हो होत नहीं दोषिका।। मात जिन वाणि आप अगण्य जीव तारिया। मैं नमूं त्रिकाल आप ज्ञान शुद्ध धारिया।।34।।
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