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लोच पंच मुष्ठि से आपने कर लिया। त्याग सर्व संग को साधु व्रत धर लिया।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमुं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।10।
उग्र उग्र तप कर साधि निज आत्मा। लेय ध्यान खड्ग कर कर्म किये खात्मा।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमुं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।11।
देव अरहन्त ने घात्ति कर्म नाशिया। हो सुखद अनन्त आपने पालिया।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमुं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।12।।
जन्म के होत दश ज्ञान के दश कहा। सुमन चतुर्दश करे महा अतिशय लहा।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमुं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।13।
अष्ट प्रातिहार्य सब महतता को करे। अनन्त दर्श ज्ञान व्रत वीर्यता को भरे।।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमुं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।14।। ___दोष अष्टादशा होत नहीं देव ही। वाणि सप्त भंगी को प्रकाशते एव ही।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमुं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।15।।
कर्म महा त्रेशठी प्रकृति नाश कीनिहो। ध्यान धार आत्म नासाग्र दृष्टि दीनिहो।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नम त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।16।। ___ वीतरागी आप हो सर्वज्ञता को लहै। भूत भावि सम्प्रति पर्याय दृष्ट हो रहे।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नम त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।17।।
जीव तीन लोक का हितोपदेश देत हो। हो हितोपदेशी आप बन्धु विनहेतु हो। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नम त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।18।।
जीवादि सप्त तत्व नव पदार्थ को भासिया। होत गुणथान अरु मार्गणा देशिया।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नमूं त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पालिया।।19।।
समास प्ररूपणा गत्यादि भी हे सही। स्याद्वाद तत्व आप अन्यथा है नही।। देव अरहन्त का शर्ण हम ले लिया। मैं नम त्रिकाल आप मोक्ष पन्थ पा लिया।।20। नाश अष्ट कर्म को अष्ट गुण पालिया। निजात्म सुक्ख मग्न हो कर्म मैल धोलिया।। देव महा सिद्ध का शर्ण हम ले लिया। मैं नम त्रिकाल आप मोक्ष सुख पा लिया।॥21॥ ज्ञान है शरीरि आप सिद्ध लोक राज ते। हो अनन्त सुक्खवान निकल ही विराजते।।
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