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मोह की फांसी चढ़े हम ज्ञान शुद्ध न पाइया। हे प्रभो घृत दीप छोडु मोह तम नश जाइया।। पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ऊँ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
इन कर्म रिपुने हे प्रभो जी दाबदी मम आत्मा। लेकर सुगन्धित धूप खेउं होय रिपु का खात्मा।।
पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ऊँ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो अष्टकर्म विनाशनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सेव नारंगी सुदाडिम श्री फलादिक फल खरे। लेकर चढ़ाऊ पद कमल में शीघ्र शिवरमणी वरे।।
पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ऊँ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
नीर चन्दन अक्षतादि द्रव्य मनहर कीजिये। पूज हो धर भक्ति उरमें मोक्ष पद फिर लीजिये।।
पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ऊँ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो अनध्य पद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं अहँ अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधु जिन धर्म जिनागम जिनचैत्य
चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा।
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