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कर्पूर चन्दन है सुगन्धित केशरी घिस लाय है। संसार का दुख मेटने को चरण में चर्चाय हैं।। पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ॐ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्द्र सम उज्ज्वल अखण्डित अक्षतों को लीजिए। अक्षत निधि के हेतु जिनवर पुंज पद में कीजिए।
पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ॐ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
संसार में भटका बहुत ही ब्रह्मचारी ना बना। उस काम दुष्ट विनाशने को पुष्प छोड़ हूँ घाना।। पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ऊँ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो काम वाणं विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
दौड़ता मैं इत उते ही भूख जोरों से लगी। पकवान नाना भांति छोड़े क्षधा डाकिन ही भगी।।
पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ऊँ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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