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समुच्चय नव देवता पूजा (रचयिता-ब्र. सूरजमल जी)
गीता-छन्द मैं पंच परमेष्ठी यजु अरु चैत्य चैत्यालय सदा। अरु सप्त भंगी नमुं वाणी, धर्म जिनवर ने कहा।। नव देव हैं ये जगत मांही स्थापना हम कर रहे।
आव्हान हो धरकर-हृदय में पाप पुंजी को दहे।। ऊँ ह्रीं पंच परमेष्ठी जिन चैत्य चैत्यालय जिनवाणी स्याद्वाद जिन धर्मेति नवदेव समूह
अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं पंच परमेष्ठी जिन चैत्य चैत्यालय जिनवाणी स्याद्वाद जिन धर्मेति नवदेव समूह अत्र
तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं पंच परमेष्ठी जिन चैत्य चैत्यालय जिनवाणी स्याद्वाद जिन धर्मेति नवदेव समूह अत्र
मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
अर्थाष्टकं-गीता
भर स्वर्ण झारी मिष्ट जल की भक्ति दिल में जोडिए। त्रय रोग नाशन हेतु धारा तीन दिन पद छोडिए।।
पूज्य है नव देव जग में जो अनादि काल से।
पूजते हम भक्ति पूर्वक हों पृथक भव जाल से।। ॐ ह्रीं श्री नवदेव समूहेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
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