________________
आप लखते नहीं, धर्म घाते सही, धर्म के कारणें, मरण माड़े मही। तास लख जोर बहु, सकल कम्पे जना, जोरतें धर्म पर-भाव पूजों घना। ऊँ ह्रीं श्री शक्तितः मार्गप्रभावनाभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
हुकुम ताके थकी, सकल कम्पै मही, देख धरमी नहीं, धर्म लंधे कहीं। धर्मधोरी महा, धर्म का धारजी, जजों यह भाव पर भावना सार जी। ऊँ ह्रीं श्री आज्ञातः मार्गप्रभावनाभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देख तप तास सब, चकित मन में रहे, देहते ममत तज, वास दुर लहे। नाँहि मोही तबै, काज ऐसो बनें, तप थकी मार्ग पर-भाव इह जज नमें। ऊँ ह्रीं श्री तपस्तः मार्गप्रभावनाभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मन सदा धर्म पर-भावना चाहि है, इन्द्र चक्री जिसा, उछल मन भाय है। देख सुन धर्म उद्योत सुख पायजी, मन थको धर्म पर-भाव जज याहिजी।। ऊँ ह्रीं श्री मनस्तः मार्गप्रभावनाभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देख तिस ज्ञान जग, महा चक्रित रहे, ज्ञान केवल थकी कालत्रय की कहे। ज्ञान ऐसो नहीं, और मत पायजी, ज्ञान कर धर्म पर - भाव जज भायजी।। ऊँ ह्रीं श्री ज्ञानतः मार्गप्रभावनाभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देख तिस दान को, सकल अचरज लहे, दान ऐसो नहीं, और मत में कहे। या जिसो धर्म नहिं, और जग इमि कहे, धर्म पर-भाव जज, दान कर शुभ ऊँ ह्रीं श्री दानतः मार्गप्रभावनाभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
लहे।
933