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लय नैवेद्य रस, धार सुखकार जी, मोदकादिक सुभग, थाल में धार जी। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी। ___ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दीप तम के हरा, रतन के लाय जी, थाल भर आरती, भक्ति बहु भाय जी। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।।
ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
धूप शुभ गन्ध की, धार मन लायके, अग्नि मैं खेय हों, भक्ति मुख गायके। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।
ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफला लोंग पूंगीफला आन जी, और फल सुभग ले, पात्रमें ठान जी। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।।
ॐ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
नीर गन्ध अक्षता, पहुप चरु लाइये, दीप फल धूप कर, अध्यगुन गाइये। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।।
ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकयं - मनियानन्द की चाल द्रव्य बहु खरचजिन, मन्दिर बनवाय हैं, तीर्थ सिद्ध क्षेत्र को, संघ चलवाय हैं। दीन का दान देय, दया मन लायजी, सो जजों मार्गपर-भावना भायजी।। ऊँ ह्रीं श्री द्रव्यतःमार्गप्रभावनाभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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