________________
संसार भोग शरीर से, निर्वेद दीक्षा-दायकम्। नरजन्म प्रभु की अर्चना से, शुभ मिले शिवकारकम्।। तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना | श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना ॥52॥
ओं ह्रीं सिद्धसाक्षिदीक्षाकारिभवप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जिनचन्द्र के निर्मल सुशासन, के असीम प्रभाव से।
वज्रवृषभ नाराच संहनन, प्राप्त पूजन-भाव से ।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना । श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना ॥53॥
ओं ह्रीं वज्रवृषभनाराचसंहननमुक्तिप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नत्रयामृत से विभूषित, ध्यान के उपयोग से।
निर्मल यथा विख्यात हो, जिन अर्चना के योग से ।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना ।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना॥54॥
ओं ह्रीं यथाख्यातरत्न त्रयाचरणयुक्तबलप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निज ध्यान में तल्लीन, आतमस्वाद अम्मृत चख सके। तीर्थेश शान्ति जिनेश पूजन से, निजातम लख सके।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना ।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।। 55 ॥
ओं ह्रीं स्वात्मध्यानामृत स्वादसहितभवप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
93