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प्रत्येकाध्य - चौपाई छन्द सब जीवनतें समता-भाव, तप संयम करने को चाव।
सो सामायिक आवशि जोय, मैं पूजों वसुद्रव्य सँजोय।। ऊँ ह्रीं सामायिकसहितायै श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चौबीसों जिनकी श्रुति होय, स्तवनावश्यक कहिये सोय।
ताको वसुद्रव अध्य बनाय, पूजाविधि ठाने मन लाय।। ॐ ह्रीं स्तवसहितायै श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सो जिनवर को शीशनमाय, पूजाविधि ठाने मन लाय।
वृंदनावश्यक कहिये सोय, ताको पूजों अध्य सँजोय। ऊँ ह्रीं वन्दनासहितायै श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो प्रमादतें लागे दोष, ताको दूर करन को पोष।
सो प्रतिक्रमणावश्यक जान, पूजों अध्य धार सो आन।। ऊँ ह्रीं प्रतिक्रमणसहितायै श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पापक्रिया को त्याग सुजान, वरते सावधान बुधिमान।
प्रत्याख्यानावश्यक जोय, ताको मैं पूजों मद खोय॥ ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानसहितायै श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मन वचतन का त्यागी होय, वरते ममतरहित चित सोय।
___कायोत्सर्गावश्यक जान, याको मैं पूजों मन आन। ॐ ह्रीं कायोत्सर्गसहितायै श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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