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सुम कल्पबेल के गन्ध धार, नाना रंगधारी शुभ अकार। तिनकी कर माला भक्ति लाय, पूजों षट् आवशि शीश नाय ।। ऊँ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
नाना रसजुत नैवेद्य जान, कर मोदक शुभ आचार ठान । धरि सुभग थाल उरभक्ति भाय, पूजों षट् आवशि शीश नाय ।। ऊँ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मणिदीप ज्योति मय तम विनाश, भरथाल आरति श्रुति प्रकाश । अंग सकल नाय मन शुद्ध लाय, पूजों षट् आवशि शीश नाय।। ॐ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
ले अगर आदि दशगन्ध सोय, कर इकठी धूप बनाय जोय। खेऊं अगनी में भक्ति लाय, पूजों षट् आवशि शीश नाय ।। ॐ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल बदाम खारक अनूप, पूंगीफल पिस्ता लोंग रूप धर भले पात्र में भक्ति लाय, पूजों षट् आवशि शीश नाय।। ऊँ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन तन्दुल पुष्पसार, चरु दीप धूप फल अरघ धार। धर भक्तिभाव ले आय पाय, पूजों षट् आवशि शीश नाय ।। ऊँ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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