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ये षट् आवश्यक मुनि करे, इनविन वरत दोष को धरे । तातें अवश्य करे मुनिनाथ, मैं यह भाव जजों सिर हाथ ।। ऊँ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला (बेसरी छन्द)
आवश्यक हरता अघ-धारा, आवश्यक
ये षट् आवश्यक मुनिवृष राखें, खेत बाड़ ज्यों रक्षा भाखें । अवश्य कर तातें सुनि भाई, नामावश्यक जिनधुनि गाई।। आवश्यक ये जजें सु प्रानी, सो अवश्य शिव लहेमहानी। तीर्थंकर पद याते पावे, और नाहिं जग में भरमावे || कर्म कुठारा। आवश्यक मुनिवृष जड़ जानो, आवश्यक मुनिमित्र बखानो।। आवश्यक भावन जो भावे, सो भवि अवशि अमर हो जावे । आवशि ध्यान आवश्यक धारें सो प्राणी कर्मारी मारे || आवशि तें आरति नश जावे, आवशि तें आतमहित पावे। हरे पाप वृषको उमगाया, • तातें आवशि भाव सुभाया। आवशि समताभाव बढ़ावे, आवशि तपसंजम समझावे । आवशि जिनथुतिजाननहारा, आवशि प्रभुपूजाविधिसारा।। आवशि लगे पाप को धोवे, आवशि पापत्यागविधिजोवे। आवशि तनतें नेह तुड़ावे, सो आवशि मैं जजों सुभावे।।
दोहा
आवशिभाव अनूप धर्म, भावे जो सुधभाव। लहे तीर्थपद सो भविक, आवशि भाव कराव।। ऊँ ह्रीं श्री षडावश्यक भावनायै पूर्णाघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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