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जयमाला- दोहा यह जिनवाणी जगत हित, करुणासागर जान। षट्कायिक रक्षक जननि, सो जजि हों
सुखदान।
(बेसरी छन्द) यह जिनवानी शिव सुखदानी, लगे पान नाशे मुनि मानी। यातें सुरग मोक्ष को पावे, तातें भवि हम शीश नमावें।। या बिन उरके पट नहिं खूटे, या बिन कर्मबन्ध नहिं छूटे। यह भवदधि को नाव बतावें, तातें भवि हम शीश नमावें।। याही तें मुनि शिवमग पाया, या बिन आतम जग भरमाया। सफलभवा जब जिनधुनि पावें, तातें भवि हम शीश नमावें। यह जिनवानि भुवनत्रय दीवा, यातें जिनपद लखे सुजीवा। दयानिधान जगत जस गावें, तातें भवि हम शीश नमावें।।
हरि सुर याको पूजें भाई, याफल सुरगलक्ष्मी को पाई। गुणधर मुनि याकोनित ध्यावें, तातें भवि हम शीश नमावें।।
दोहा जिनवाणी गुण कथन को, समरथ नाही कोय। ता ध्याये जिनपद मिले, इमि लखि पूजों
सोय।।
ॐ ह्रीं प्रवचनभक्ति भावनायै पूर्णाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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