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जीव अस्ती तथा, नास्ती है सही, एकवा अनेक जिय, आदि सब विधि कही।
अंग व्याख्या प्रज्ञप्ति, नाम इमि चयो, या धरा मुनिबहु-श्रुतपदवि जजि नयो।। ऊँ ह्रीं व्याख्याप्रज्ञप्तिअंगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तीर्थ जिनदेव के, कहे अतिशय सही, दिव्यधुनि समोसर्ण, आदि शोभा कही। अंग ज्ञातृकथा मांहि, इमि सबही कहे, या धरा मुनि बहुश्रुत पदवि जजि लहे। ऊँ ह्रीं ज्ञातृकथंगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रतिमाभेद ग्यारह तहां वरणए, और आचर श्रावक तनै बहु चए। उपासकाध्ययन सो, अंग या विधि कही। या धरा मुनिबह-श्रुत जजों सुख मही।। ऊँ ह्रीं उपासकाध्ययनांगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
एक इक तीर्थ समै, ये ज दस दस भये, आय अन्त काय तजि, ज्ञान ले शिव गये। अन्तःकृतांगदशम के, माँहि इनविधि कही, या धरा मुनि बहु-श्रुत जजों शुभ मही।। ऊँ ह्रीं अन्तःकृतशांगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
एक इक जिन समै, भये दस दस मुनी, अन्त काय तजि, पदवी अहमिंद ठनी।
यह अनुत्तरोपपाद, दशमअंग इमि कही, या धरा मुनि बहुश्रुत-जजों थुति ठही।। ॐ ह्रीं अनुत्तरोपपादकशांगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गई वस्तु तथा मूठि-तनी वस्तु जानजी, ओर होनहार विधि, लिखे सब आन जी।
प्रश्न व्याकर्ण अंग, धार उत्तर करे, या धरा मुनि बहु-श्रुत जजों अघ हरे।। ऊँ ह्रीं प्रश्नव्याकरणांगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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