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शुभाशुभ कर्म का, फल तिको जानिये, तीव्र मन्द जैसे अनुभाग रस आनिये। सूत्र सु विपाक अंग, मांहि इमि भास है, या धरा मुनि बहु-श्रुत थुति राशि है।। ऊँ ह्रीं विपाकसूत्रांगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अंग आचार इन, आदि ग्यारह सही, महाश्रुतज्ञान यह, ऋद्धि बहु इस मही। तीन जग गुरु जग, नाथ मुनि सोयजी, अंग सब धार बहु-श्रुत जजों जोय जी। ॐ ह्रीं एकादशांगसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वस्तु उत्पाद व्यय, ध्रौव्य लक्षण सही, द्रव्य पर्याय गुण, साधनादिक कही।
पूर्व उत्पाद सो, तास में इमि चयो, या धरा बहुश्रुत, पाय मैं सिर नयो।। ॐ ह्रीं उत्पादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तास मैं सुनय वा, कुनय व्याख्यान जी, द्रव्य क्षेत्रर तने भाव को मान जी।
कथन इन आदि अग्राणि पूर्वकह्यो, या धरा बहुश्रुत, पाप जजि धनि भयो।। ऊँ ह्रीं अग्रायणीपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आत्म वीरज तथा, काल वीरज सही, भाव तप वीर्य वा, क्षेत्र वीरज कही। वीर्य अनुवाद पूरब, विर्षे इमि कह्यो, या धरा बहुश्रुत, पाय जजि धनि भयो।। ॐ ह्रीं वीर्यानुवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
द्रव्य अस्ती तथा नास्ती इमि कह्यो, भावद्रव्य क्षेत्र काल आदि तहां सब चयो।
पूर्वं अस्ति नास्ति में, कहीयों विधि सही, या धरा बहुश्रुत, पाय जजि शुभ मही॥ ऊँ ह्रीं अस्तिनास्तिप्रवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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