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वैयाव्रत जाके उर आवे, सो जिय सब सज्जन मन भावे । वैयाव्रत सब दोषनिवासी, या फल जगलक्ष्मी हो दासी ॥
वैयाव्रत तें वैर नसावे, वैयावृत जगनेह बढ़ावे। वैयाव्रत को जो भवि पासी, ताफल हो जगलक्ष्मी दासी॥ वैयाव्रत जाके मन मांही, सो जगपूज्य कहो जगठांडी। वैयाव्रत को मैं सिर नाऊँ, ताके फल जगमें न भ्रमाऊं ।। वैयाव्रत सब धर्म निशाना, वैयाव्रत तें होय मनाना । ताफल लहें हिये में ज्ञाना, तातें वैयाव्रत परधाना।। वैयाव्रत तप में परधाना, वैयाव्रत में भवदधि हाना। वैयाव्रत शिवराह बतावे, वैयाव्रत को जग जस गावे || वैयावृत्य छिनक अधमारा, वैयाव्रत सन्तन को प्यारा। वैयाव्रत सा और न मिन्ता, वैयाव्रत मेटे भवचिन्ता।।
दोहा
वैयाव्रत में गुन घने, कबलों कहों बनाय । तातें मुनितन टहल को, करो सुमन वचकाय।। ऊँ ह्रीं वैयावृत्यभावनायै पूर्णाघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
10. अर्हद्भक्ति भावना पूजा (अडिल्ल छन्द)
प्रातिहार्य वसु नान्त चतुष्टय जानिये, दस जन्मत दस केवल उपजत मानिये। चौदह देवा करें सकल छ्यालीस गुन, इन जुत अर्हत जजों थाप इहां शुद्ध मन।। ऊँ ह्रीं श्री अर्हद्भक्तिभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री अर्हद्भक्तिभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री अर्हद्भक्तिभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
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