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बहुत दिनों के दीक्षित होय, साधुजाति-मुनि कहिये सोय।
इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर-पद फलदाय।। ऊँ ह्रीं श्री साधुजातिमुनिवैयावृत्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ज्ञान तपस्या में पटु भया, सो मनोज्ञ यति पावन थया।
इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर-पद फलदाय।। ॐ ह्रीं श्री मनोज्ञवैयावृत्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ये दस जाति मुनी भवतार, इनकी सेव करे भवपार।
जो इन वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर-पद फलदाय।। ऊँ ह्रीं श्री दशजातिमुनिवैयावृत्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
दोहा वैयावृत सब व्रतन में, बड़ी वरत मन लाय। याकी सेवा जो करे, सो शिव पहुँचे जाय।।
(बेसरी छन्द) वैयावृत्य धरम का मूला, वैयाव्रततें अघक्षय थूला। वैयाव्रत कीजे गुरु केरा, तातें मिटे जगत का फेरा।। वैयावृत महागुण प्यारा, वैयाव्रत भवदधि का तारा। वैयाव्रत वृष अंग का डेरा, तातें मिटे जगत का फेरा।।
वैयाव्रत वृषबीज बताया वैयावृत जगबन्धू गाया। वैयाव्रत-सा धन नहिं नेरा, तातें मिटे जगत का फेरा।। वैयाव्रत आभूषण जाके, जा सम शोभा और न काके। वैयाव्रत दुख बन्ही नीरा, तातें मिटे जगत की पीरा।।
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