________________
तप जो दुद्धर बहुविध करें, तपसि जात मुनि ते अघ हरे । इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर - पद फलदाय।। ऊँ ह्रीं श्री तपस्विवैयावृत्यभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर से जो पढ़े सुजान, शैक्ष्य जाति सो मुनि पहिचान। इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर - पद फलदाय ।। ऊँ ह्रीं श्री शैष्यजातिमुनिवैयावृत्यभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रोगसहित तन समताभाव, सो गिलान मुनि भवदधि नाव। इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर - पद फलदाय।। ऊँ ह्रीं श्री ग्लानजातिमुनिवैयावृत्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वयकरि बड़े तथा गुण चढ़े, इनका सँघ सो गण मुनि बड़े। इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर-पद फलदाय ।। ऊँ ह्रीं श्री गणवैयावृत्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दीक्षा दायक स्नातक जोय, ते कुलजाति-मुनी अवलोय। इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर - पद फलदाय ।। ऊँ ह्रीं श्री कुलवैयावृत्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि आर्या श्रावक श्राविका, इनको सँघ कहिये अघ थका। इनको वैयाव्रत मन लाय, सो तीर्थंकर - पद फलदाय।। ऊँ ह्रीं श्री चतुःप्रकारसंघवैयावृत्यभावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
895