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भोजन मांहि कछू रति लहे, वकुश जाति सो मुनिवर कहे।
तिनकी साताविध मन लाय, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ऊँ ह्रीं श्री वकुशमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि कुशील कहे जुग भेद, इक कषाय प्रति सेवन वेद। तिनकी साता विधि मन लाय, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ॐ ह्रीं श्री कुशीलमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
उत्तरगुन में कछु अतिचार, सो प्रतिसेवन साधु विचार।
तिनको साताविधि मन लाय, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रतिसेवनाकुशीलमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दशमें गुणथानक लों सही, तबलों मोह उदय अस कही।
सो कषाय कुशील मुनिराय, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ऊँ ह्रीं श्री कषायकुशीलमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जब जिस मुनिका केवल होय, साधु नातक कहिये सोय।
तीन लोक पूजन मन भाय, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ऊँ ह्रीं श्री स्नातकमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ये पांचों मुनि हैं शिवनाव, सबही नगन जानकर ध्याव।
शिवनायक दायक शिवभव, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ॐ ह्रीं श्री पंचप्रकारमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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