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बहुबिध रस नैवेद्य बनाय, उज्जवल पातर ले हरषाय।
पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल क्षुधानास को पाव।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक मणिमय थाल भराय, मनवचतन करि भक्ति बढ़ाय।
पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल नाशे मिथ्या दाव।। ॐ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
धूप जु दसविध गन्ध मिलाय, अग्नि विर्षे खेऊं मनभाय। पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल अष्टकर्म-क्षय जाय।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल लोंग बदाम अपार, खारक आदि और फल सार।
पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल सिद्धिथान-फल पाव।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन अक्षत सुमलेय, चरु अरु दीप धूप फल जेय।
पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल अद्भुत फल उपजाय।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै अध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाध्यं (चौपाई छन्द) मूलगुणों में जो अतिचार, लागे जाहि यती को सार।
सो पुलाक मुनि सातादाय, साधुसमाधि जजों सुखदाय।। ॐ ह्रीं श्री पुलाकमुनिसाधुसमाधिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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