________________
पाप उदय अपकीरति भारी, आकुलता उपजावें। मनसंताप महादुःख ज्वाला, सबसुख शान्ति जलावें।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।32॥ ओं ह्रीं अपकीर्युपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
विश्व के कल्याण की, मंगलमयी शुभकामना। ज्ञान दर्शन चरित तप हो, मोक्ष की प्रस्तावना।। तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।33।। ओं ह्रीं सम्पूर्णकल्याणमंगलप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चिन्तामणि के तुल्य फलप्रद, शान्तिप्रभु की भाव से।
अर्चना मैं नित करों, सानन्द अतिशय चाव से।। तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।34।। ओं ह्रीं चिन्तामणिसमानचिन्तितफलप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कल्पद्रुम-समफल-प्रदात्री, पाप-ताप विनाशिनी। आराधना श्री शान्तिजिन की, सतत मंगलकारिणी।। तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।35।। ओं ह्रीं कल्पवृक्षोपमकल्पितार्थफलप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
88