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कामधेनू तुल्य अनुपम, सब मनोरथ-सारिणी। आनन्द दायक अर्चना, प्रभु-की, सदा हितकारिणी।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।36।। ओं ह्रीं कामधेनूपमकामनापूर्णफलप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
परम उज्ज्वल धर्म ध्याना-राधना की कारिणी। बाधा-रहित प्रभू अर्चना, आनन्त-मंगल-दायनी।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।37॥ ओं ह्रीं परमोज्ज्वलधर्मध्यानबाधारहिताय अनवद्यबोधप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
त्रैलोक्य के सब प्राणियों को, नेत्र का उत्सव करे। मनसिज-सदृश-सौन्दर्य पावे, जो प्रभू की पूजा करे।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना। श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।38।। ओं ह्रीं कामदेवस्वरूपप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर चन्दन अगुरु पंकज, तुल्य सुरभित देह हो। यदि शान्तिजिन की अर्चना में, अमल निश्चल नेह हो।।
तीर्थेश चक्रि अनंग पद, भूषित प्रभू की अर्चना।
श्री शान्तिनाथ जिनेश की मैं, नित करूँ आराधना।।39।। ओं ह्रीं सुगन्धितशरीरप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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