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कर्म उदय दुर्भिक्ष उपद्रव, अन्न अभाव सतावे। जठरानल की भीषण ज्वाला, से प्राणी विलखावे।। शान्तिनाथ के पद पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें|| 28৷
ओं ह्रीं दुर्भिक्षोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अन्तराय यह लाभ विरोधी, कर्म उदय जब आवे ।
व्यापारादिक वृद्धि न होवे, धन उद्योग नशावे॥ शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें || 29 ৷
ओं ह्रीं व्यापारवृद्धिराहित्योपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सम्बन्धी परिवार सगे सुत, भ्राता होय विरोधी । घोर उपद्रव आय करें अरु, होवें कार्य - विरोधी शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें ॥30॥
ओं ह्रीं बन्धुत्वोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अकुटुम्बी सन्तान बिना नित, अति संक्लेशित होवें। मिथ्यामोह उदय से प्रेरित, प्राणी रोवें धोवें।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें । मुक्तिधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें ॥31॥
ओं ह्रीं अकुटुम्बोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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