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उच्चाटन मोहन थम्भन कृत, घोर उपद्रव आवें। विद्या दुष्ट अनेक प्रकारी, आकर नित सतावें।। शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।24।। ओं ह्रीं मोहनस्तम्भनोच्चाटनप्रमुखदुष्टविद्योपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय
अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दुष्ट नवग्रह कृत पीड़ा जब, कर्म उदय से आवे। अज्ञानी नर मूढ मिथ्यात्वी, कुगुरु कुदेव मनावें।। शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।25।। ओं ह्रीं दुष्टग्रहाद्युपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
लोह श्रृंखला के दृढ़ बन्धन, अंग प्रत्यंग दुखावें। पीड़ि त प्राणी महादुःख पावें, हाहाकार मचावें।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मक्तिवध के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।26॥ ओं ह्रीं श्रृंखलाद्युपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अल्पं आयु कृत कर्म संयोगे, होय मरण दुःख भारी। मन में होय प्रचण्ड विकलता, दुखिया सब संसारी।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।27। ओं ह्रीं अल्पमृत्युपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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