________________
विद्युत्पाद भयंकर वर्षा, ओला पाला भारी। दैवविवाक अनेक उपद्रव, से पीड़ि त नरनारी॥ शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।21॥ ओं ह्रीं विद्युत्पातादिभीमाम्बुवृष्युपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय
अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
युद्धस्थल के मध्य शत्रुदल, शस्त्र अनेक चलावें। कर्म असात अकालमरण दुःख, जीव संसारी पावें।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।22॥ ओं ह्रीं संग्रामस्थलारिनिकटोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
डाकिनी शाकिनी भूतप्रेत अरु, चोर पिशाच घनेरे। कर्मों के परिपाक विषय सों, आय रहें नित घेरे।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।23।। ओं ह्रीं डाकिनीशाकिनी भूतप्रेत पिशाचादिभयनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय
अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
85