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ओं ह्रीं दावानलोद्भवोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
घोर प्रचण्ड पवन का दुर्जय वेग भयंकर आवे। सागर मध्य प्रचण्ड लहर की, भीम भँवर लहरावे।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।17॥ ओं ह्रीं प्रचण्डपतनोद्भवोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नौका पोत स्फोट उदधि में, दारुण दुःख-प्रदाता। सागर मध्य पतन जब होवे, कर्म विपाक असाता।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।। 18॥ ओं ह्रीं नौकास्फुटितपतनोद्भवोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वन पर्वत भू-मण्डल मध्ये, भीम उपद्रव भारी। प्रभु पूजा से दर सभी हों, जिनपद धोक हमारी।। शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।19॥ ओं ह्रीं वनगमनेदिनीभयंकरोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सरिता सागर कूप सरोवर, वापी झील जलाशय। इन मध्ये उपसर्ग भयंकर, करता कर्म दुराशय।। शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें।
मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।20॥ ओं ह्रीं नदीसरोवराब्धिकूपह्रदोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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